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मेरी हमबिस्तरसे / साहिल परमार
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10:12, 21 मई 2018
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<poem>
बयाँ
बया
के घोंसले को
जैसे तितर-बितर कर देता है
छलाँग लगाकर
चौपट
और अपारदर्शी
घुलमिल
घुल-मिल
जाते हैं उसमें
अकुला देनेवाला अतीत
और
अनिल जनविजय
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