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Kavita Kosh से
पर्वतों से दृढ़ खड़े जो,
...शत्रु को ललकारते हैं,
...जूझते हैं, मारते हैं,
...विश्व केर कर्तव्य पर जो
...ज़िन्दगी को वारते हैं,
कब शिथिल होती, प्रखर उनकी रवानी !
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