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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
जीणै रो अरथ
बळनो जळनो है
तो मोमबत्ती बण
अगरबत्ती ज्यूं होमीज ज्या।
पण फिड़कलै ज्यूं
अनमोल जीव रा
पुरचा मत उडा
बीज बळयां
जीवती चामड़ी बळयां
मुरडांद आसी
जी मिचळासी।
मूंज बळै पण बंट रै जासी
जनम-जात स्वभाव स्यूं
लार नईं छूटै।
मिनख जूण मिली है
पग लेवो अर पा पा
चालणो सीखो
गोदी स्यूं उतरो, थड़ी करो
लोगां रा कांधा मत तक्को।
पराई आंगळी पकड़‘र
कित्तीक दूर चालणो चावो
आंगळी रै सरोदै चालणियां
दिसा भटकसी।
धोरो री धूळ नरम
पसरै, घिसकै
घिसकतो घिसकतो
माथै नै आ जावै लो।
</poem>
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