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<poem>
पगडांडी रा मोड़ मिनख रै
उणियारै री आरसी।
चेते रा चितराम जगत री
तपती काया ठारसी।।

आभो है अणजाण धरा पर
आखर कंवळा है-
चूले अणबूझ आंच
चेतरा मारग अंवळा है
भभक उठैली हाय-लाय
जद कण-कण मन रो धारसी।

बळसी चाली पवन बिरछ रा
पीळा पड़िया पात
फळ मांदा कद बीज बणैला
माळी करियां घात
चेत मानखा राख रूखाळी
लोग मिनख नै मारसी।

बाळू-भींत अकर री ओछी
पल भर री है पावणी
मान करै आ‘ - मै’ आंधी रा
लागै है अणखावणी
काठ री हांडी चूले चढियां
बळ-जळ आपो हारसी।
जगत तारणी मिनख मारणी
सगती दावेदार है
माथै ऊपर बूक मांडणी
दुनियां सा‘ बीमार है
धन रा लोभी लाभ देखसी
बिना मिनख रै सारसी।।
अणहोणी नै नमस्कार है
होणी नै कुण टाळसी
बीज में रूंख रो रूप पळै
पण-कुणसै संचै ढाळसी
चेते रा चितराम मिनख री
काया नै अब ठारसी
पगडांडी रा मोड़ मिनख रै
उणियारै नै आरसी।।
</poem>
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