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<poem>
तिसरी कूख तिंवाळा जामै
भूख री कूख भतूळिया
जिण धरती अै पुन्य पांगरै
मिनख मानखै धूळिया।

घणी उमसरा गोट घेर ली
सीळी सांसां सावण री
बीज धरा रै गरभ गळै
जद आस छूटज्या गावण री
मनरा मिरग उछाळौ खायां
घणा उठै भम्भूळिया
मिनख मानखै धूळिणा।

होटां हाट हंसी बैचणियां
मनरो मोल करै कोनी,
जुग जूनी अणजाण आसरो
पूरो तोल करै कोनी
मिनख रूप कंकाळ धरा पर
घणा फिर तकतुळियां।
मिनख मानखै धूळिया

आस चिड़कली इण मोसममें
गीतां सूं क्यूं रूठी है
अणचींती कुचमाद धरा पर
मरगोजै ज्यूं फूटी है
लूंठी पोळ पुराणी पड़गी
तोड़ उतारी चूळिया
मिनख मानखै धूळिया
</poem>
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