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<poem>
'''सांग:- द्रोपदी स्वंयवर (अनुक्रमांक-8)'''

'''वार्ता:-'''
द्रौपदी सभा में जब कर्ण का अपमान करती है और उसको दासी पुत्र कहकर बुलाती है तब कर्ण सभी राजाओं को कहता है कि भाई ये औरत जात है इसकी बात का मैं बुरा नहीं मानता। कर्ण सभा में औरतों के बारे में व्याख्यान करता है अौर अपने किए हुए अपमान का बदला लेने का प्रण करता हुआ क्या कहता है।

'''छाती मै घा कर दे, कड़वा बोल लुगाई का,'''
'''बड़े-बङ्या नै पाट्या कोन्या, तोल लुगाई का ।। टेक ।।'''

निगाहं प्रीतम की खींची रहै, सूरत चरण मै जचीं रहै।
जै बुरे कर्म तै बची रहै, तो के मोल लुगाई का।।

कभी हरा दे कभी जीता दे, कभी भुला दे कभी चेता दे।
भर दे कभी रीता दे, खाली डोल लुगाई का।।

तीरछी नज़र लखावै हंस के, छुटै ना ईसा पकड़ ले कस के।
कामी जन ग्राहक रस के, गोल कपोल लुगाई का।।

कर ख्याल उघाड़ै मतना, दे परदा डाल उघाड़ै मतना।
नदंलाल उघाड़ै मतना, ढक्या होया ढ़ोल लुगाई का।।

'''दौड़:-'''
लड़की बात करी गड़बड़ की छाती धड़की हो गे घा,
बिजळी की ज्यूं कड़कण लागी,तेल अग्न मै छिड़कण लागी,
दूणी अग्नि भड़कण लागी,हटज्या दूर परै,

बोलां की मारी बरछी,लिख-लिख धर रह्या सूं पर्ची,
तिरछी नजर लखावण लागी,घा पै जहर लगावण लागी,
सूत्या शेर जगावण लागी,ऊपर पैर धरै,

खुलज्यागी कोय गाँठ भरम की,जिसकै लगज्या चोट मर्म की,जीवै नहीं मरै,
बगज्यागा कोय वायु झौंका,निधि पार होज्यागी नौंका,
एक दिन मेरा लागज्या मौंका,ईश्वर मेहर करै,

दीनानाथ दयाल दयानिधी भक्तों की वो करै सहा,
जो भक्तों नै प्रण करया वो ऐ पूरा दिया पूगा,
मैं भी प्रण करूं सूं लड़की तनै पहल तैं रह्या बता,

जुल्म करे लड़की मेरी आबरू बिगाड़ी रै,
जाणबूझ पैरों पै तनै मार ली कुल्हाड़ी रै,
किये हुए कर्म तेरै आज्यागें अगाड़ी रै,
लागज्यागा मौका तेरी तार ल्यूंगा साड़ी रै,
राजों कै बिचाळै तनै कर द्युंगा उघाड़ी रै,

जो कह रह्या सूं तनै बताऊँ सुणती जाइये ध्यान लगा,
तेरै रोम-रोम तैं बदला ल्युंगा बिल्कुल टाळ बणै कोन्या,
खड्या होया जब चाल पङ्या वो सब राजां नै कह सुणा,
बेगम जात लुगाई की हो करै किसे की परवाह ना,
कहे सुणे का गिला करूं ना साफ आपनै रह्या बता,

मिनटा के म्हां हँसै मिनट मै रो लुगाई दे,
बणी हुई माणस की इज्जत नै खो लुगाई दे।

लागज्या सख्त मर्म की चोट,मर्द उसको भी सकता ओट,
हो मामूली सा खोट,उल्हाणे सौ लुगाई दे।
बिना बात का झूठा झगडा झौ लुगाई दे।।

फर्क नही किसे बात मै,रंग पलटै स्यात्-स्यात् मै,
छेड छेड़ कै गात मै,जगा छौह लुगाई दे।
एक बै हंस के बोलै,कह हां औ लुगाई दे।।

रोम रोम भरया छल के अंदर,चकमक रहता जल के अंदर,
स्वर्ण का पल के अंदर,कर लौह लुगाई दे।
ना जाण देवता सकै इसा भर धौ लुगाई दे।।

बिना काम मचा दे रौळे,पल म्ह वस्त्र कर ज्या धौळे,
झूठे मणीये ओळे सोळे,पौ लुगाई दे।
मरैं भाई कटकैं,बीज विघ्न के बौ लुगाई दे।।

त्रिया चलत्र क्या हो सकता,ना नन्द लाल भेद टोह सकता,
ना मर्दा पै हो सकता,कर जो लुगाई दे।
बणै शूली तै दुःख बुरा,राम जै दो लुगाई दे।।

इतणी कहकैं चाल पङ्या वो दुर्योधन कै गया पास,
दुर्योधन कै धोरै जब लम्बे-लम्बे मारै साँस,
जीवणा बेकार मेरी आबरु का होग्या नास,
कथन करत नित दादा गुरु शंकरदास।।
</poem>
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