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<poem>
'''उपदेशक भजन- ब्रह्मज्ञान रचना'''

'''थोड़ी सी जिन्दगानी खातिर, नर क्या क्या तौफान करै,'''
'''तेरा एक मिनट का नहीं भरोसा, बरसों का सामान करै ।। टेक ।।'''

काया रूपी सराय बीच मैं भक्ति करने आया तूँ,
देख देख धन माल खजाना मन मूर्ख इतराया तूँ,
कुटुम्ब के कारण बणया कमेरा दिन ओर रात कमाया तुँ,
धर्म हेत ना धेला खर्चा करोड़पति कहलाया तुँ,
जोड़ जोड़ धन करया इकट्ठा ना खर्चे ना दान करै।।

बालकपन हंस खेल गवाँया मिल बच्चां कि टोली मैं,
फेर बैरण चढ़ गइ जवानी तु बैठा संगत ओली मैं,
बुढ़ा होगया दांत टुट गे सांच रही ना बोली मैं,
सब कुनबे नै कड़वा लागय उठा गेर दी पोली मैं,
तीनों पन तेरे गये अकारथ ना ईश्वर का गुण गान करै।।

जिस घोड़ी पै तु चढ़या करै था वा घोड़ी जा गी नाट तेरी,
त्रिया संग के प्रीत बावले या जोड़ी जागी पाट तेरी,
भाई बंध सब कट्टठे होकैं या तोड़ी जागी खाट तेरी,
फेर गेर चिता पै तनैं जलांदीं या फोड़ी जागी टांट तेरी,
मात पिता ओर कुटुम्ब कबीला सब मतलब की पहचान करै।।

बड़े बड़े हो हो मरगे जो निर्भय हो डोलया करते,
तेरा के अनुमान बावले वो धरती नै तोलया करते,
दादा शंकरदास गये जो गूढ अर्थ खोलया करते,
केशवराम से नदंलाल जी राम राम बोलया करते,
भव सागर से पार उतरज्या जै कृपा श्री भगवान करै।।
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