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{{KKRachna
|रचनाकार=[[लक्ष्मीनारायण रंगा]]
|अनुवादक=
|संग्रह=सावण फागण / लक्ष्मीनारायण रंगा
}}
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<poem>
कित्ता रंग अर रूप बदळै है आदमी
किरकांट नै भी लारै छोडै है आदमी
ले राजघाट री सोगन, सान्तिवन में संकळप
सधै जे स्वारथ दळ बदळै है आदमी
असलियत कांई नीं बस पड़त ई पड़त
कांदां री फसलां निजर आवै है आदमी
सत्ता पावण नैं तो घणां लटूरिया करै
मिल जावै वोट, चोट मारै है आदमी
काळीदास हरी जुग लेता रैया है जलम
धरती-डाळ एटम सूं काटै है आदमी
ईस्वर अेक धरती ई, सूंपी ही मां सी
टुकड़े पे टुकड़ा उणनै बांटै है आदमी
</poem>
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कित्ता रंग अर रूप बदळै है आदमी
किरकांट नै भी लारै छोडै है आदमी
ले राजघाट री सोगन, सान्तिवन में संकळप
सधै जे स्वारथ दळ बदळै है आदमी
असलियत कांई नीं बस पड़त ई पड़त
कांदां री फसलां निजर आवै है आदमी
सत्ता पावण नैं तो घणां लटूरिया करै
मिल जावै वोट, चोट मारै है आदमी
काळीदास हरी जुग लेता रैया है जलम
धरती-डाळ एटम सूं काटै है आदमी
ईस्वर अेक धरती ई, सूंपी ही मां सी
टुकड़े पे टुकड़ा उणनै बांटै है आदमी
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