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रंगमंच / लक्ष्मीनारायण रंगा

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|संग्रह=सावण फागण / लक्ष्मीनारायण रंगा
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<poem>
बार बार
रंग रूप बदळ‘र
वेसभूसा पळट‘र
भेज दियो जाऊं
इयै रंगमंच पर,

जिण री
अणूती चमकती रोसण्यां में
झिळमळ इन्दरजाळी अन्ध्यारां में,
मीठी मस्तानी हंसी में
नसीली फुसफुसाटां सूं
हुय जाऊं चमगूंगो‘र
भूल जाऊं कै
हूं कूण हूं?
मनै किण पात्र रो काम करणो है ?
इण सोर हाका मांय
प्राम्पटर री आवाज भी दब जावै‘र

आज भी
अणजाण अधगैलो सो
खड़्यो हूं
इण रंगमंच पर अर
नाटक री समै
तेजी सूं
गुजरती जाय री है
</poem>
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