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|संग्रह=सावण फागण / लक्ष्मीनारायण रंगा
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<poem>
परिवेश
एक लाल
खूनी आंख
उणमें चिमकै
काळी किरणां वाळो
एटमी सूरज,

धरती
छिजती-पिघळती
थोथी-पतळी
बरफ री पड़त,
जिण माथै
हाथां में तीखी छुरयां
तलवारां लियां
काटती-भाजती
गैली लूवां
चकरीबम हुयरी है,

वातावरण
धुखतो-दमघोटूं
मसाण,
जिण माथै छायोड़ी है
रेडियोधरमी कळायण,
चौफेर
मृत्यु रा सरणांटा
बम्बा रा धमीड़ा
झांझा री गरजां‘र
लेसर किरणां रा पळका,
हर जगां
दारू रो धुवों
आग‘र लोई रो समन्दर
हर मूंढै,
मौत री चीखां‘र
मानखै री हार रो कळमस,

इण रै बिचाळै खड़यो
सतुरमुरगी धरमी
बावनियो अरजण हूं
सोचूं कै
टू बी ऑर नाट टू बी
</poem>
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