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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
कूड़ो है औ संसार
इण माथै पाप री छियां है।
अबोट अर अछूती है
इण धरती माथै
म्हारी मा री छियां।
घणी अळगी है
पापी समाज रै चकारियै सूं
छळी-कपटी नीं आय सकै
म्हारी मा री छियां रै पसवाड़ै।
सुरग-सो दरसाव
जद मा घर मांय बिराजै
मा जद नीसरै घर सूं
घर खाली लखावै
घर, घर नीं रैवै
भाटां रो ढीगो लागै घर।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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कूड़ो है औ संसार
इण माथै पाप री छियां है।
अबोट अर अछूती है
इण धरती माथै
म्हारी मा री छियां।
घणी अळगी है
पापी समाज रै चकारियै सूं
छळी-कपटी नीं आय सकै
म्हारी मा री छियां रै पसवाड़ै।
सुरग-सो दरसाव
जद मा घर मांय बिराजै
मा जद नीसरै घर सूं
घर खाली लखावै
घर, घर नीं रैवै
भाटां रो ढीगो लागै घर।
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