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रेत (दोय) / राजेन्द्र जोशी

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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
चालै सीधो
चालै गुडाळियां
आंख्यां आडी पाटी बांध्यां
राजी चालै, चावै बिराजी
मिनखपणो ई राखै कोनी
आ माटी तो माण ई राखै
पड़ै धमीड़ा खाय मांय रेत रै
लागै कोनी पड़्यां रेत में।

दुख-सुख री भेळी है म्हारै
चेतावै अर पुचकारै है
पीड़ मिनख री जावै सगळी
सूरज-चांदो आय बिराजै
मिनख-देवता अेक समान
इण रेत रो भेद नीं जाणै।

हुवै रात काळी आ अंधारी
मुळकै रेत करै चानणो
निरखै तारा रात अंधारी
इण माटी री सौरम लेवता
तारा झिळ-मिळ आवै है
आ माटी तो माण ई राखै
गीत प्रीत रा गावै है।
</poem>
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