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रेत (नव) / राजेन्द्र जोशी

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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
मिनख नै
मिनख सूं जोड़ै राखै
बात करै तो रेत
रेत बिना नीं जुड़ै तार
मून रैवै रेत
सगळां नै बोलावै रेत
दूर परदेस सूं जोड़ै रेत
मोबाईल री बोली है रेत
मोबाईल री चिप है रेत।

सगळै संसार रो भार उठावै
चाय पीवै तो रेत
जीमै तो रेत
बीमारी रो इलाज है रेत
पेन री स्याही है रेत
जिंदगी रो नांव है रेत
मिनख री पिछाण है रेत।

</poem>
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