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<poem>
'''मूर्ख का सत्संग इसा, जिसा लौहे कै जर लागै,'''
'''शेर-सांप का डर ना, मूर्ख मुसळ तै डर लागै || टेक ||'''

यह मूर्ख का पहला लक्षण, बोझ तीन मण ठावै,
पाणी पिन्दा हाँसै, रसोई रस्ते चलता खावै,
गुप्ती सलाह करै दो बैठे, बिना बलाया आवै,
ना समझें ना आँख पिछानै, ना उठै ना जावै,
के उसकी जिन्दगी जिसकै, इसा ऊत जन्म भर लागै ||

कुल दुनिया की खबर सुणै, टूनिंग रेडियो डौलै,
घड़-घड़ गड़ग तुरंत पेलै, राई तै पर्वत तोलै,
बिना बात ले मोल लड़ाई, लठ मारै घा खोलै,
बड़े बड्या नै भरी सभा म्य, मूर्ख कहै-कहै बोलै,
बोखरड़ बोल चुभै तन म्य, जणो आर गरागर लागै ||

पिछै जंगल जावै तड़कै, उठ सपोडै बासी,
दलिया खुरच तविया भरले। एक धड़ी भर लासी,
15 रोटी हड़प करै, दलदार गुदगुदी खासी,
साबत गुड़ की भेली खाकै, खोदे सत्यानाशी,
साफ पशु बिन सींग रींग बिन, और शक्ल खर लागै ||

ढेला पेट भूत सी काया, ऊं काला रठ पूरा,
कहै झूठ नै साच, साच नै झूठ कहै सठ पूरा,
ना लरजै ना मुडै टूटज्या, कीकर का लठ पूरा,
हरिकेश बिन पतै खामखा, करण लगै हठ पूरा,
एक दिन मूर्ख की सेवा कर, फिर रोजाना कर लागै ||
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