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|रचनाकार=मास्टर नेकीराम
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'''खानपान गुणगान भूलगे, छूट गया रैन बसैरा,'''
'''कैसे मुक्ति मिलै सेठ जी हुआ चारों और अन्धेरा, ।। टेक ।।'''

रति बिन सति,सति बिन जति, जति बिन गति कति नहीं भरतार,
धन बिन दान, दान बिन दानी, बचन बिन संत बेकार,
जाण बिन मान, मान बिन शान, नहीं शान बिन सतकार,
फिरी किसी माया अपरम्पार, म्हारा घर होग्या उज्जड़ डेरा।।

नदी बिन नीर, गऊ बिन क्षीर, नहीं मेल बिन सीर सुणो,
सूरा रण बिन, नाग चन्दन बिन, नहीं मर्द बिन बीर सुणो,
जल बिन ताल, कमल ताल बिन, मीन मरै बिन नीर सुणो,
म्हारी फूट गई तकदीर सुणो, दुख विपद नै घेरा।।

स्वर्ग सुहागा, काला रंग कागा, सुई धागा ना आपस म्हं न्यारा,
घन घोर देखकै मौर मचावै शौर, चौर चकोर चान्द का प्यारा,
कीट पतंग नहीं करै मोह भंग, आग संग जलकै मरै बिचारा,
यो जगत जमाना मतलब गारा,ना भीतरले का बेरा।।

सेल अणी बिन, मणी कणी बिन, धणी बिन घणी बिगजा बात दिखे,
भजन बिन भक्ति, भक्ति बिन शक्ति, बिन मुक्ति के करामात दिखे,
वृक्ष पात बिन, मनुष्य बात बिन, बिना पुत्र के मात दिखे,
नेकीराम चिन्ता दिन रात दिखे, कितै टोहल्यूं कुआ झेरा।।
</poem>
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