भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
उ.- दक्ष कै त्यागे प्राण सति नै, हिमाचल घर जन्म धारया,
होई सिवासण पड़ी जरुरुतजरुरत, मन-मन मै शिव नाम पुकारया,
पल मै गिरजा नै गणेश बनाया, गुरु जगदीश न्यू समझारया,
वा न्हा-धोकै शिव सेवा मै बैठी, शिव नै सुत का शीश उतारया,
ललित बुवाणी आले नै पूरा भेद सुणाया, मनै खोल सभा म्य गाया ||
</poem>