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पद / 1 / गिरिराज कुवँरि

No change in size, 09:48, 19 सितम्बर 2018
<poem>
अद्भुत रचाय दियो खेल देखो अलबेली की बतियाँ।
कहुँ जल कहुँ थल गिरि कहूँ कहँू कहँू कहूँ कहूँ वृक्ष कहँु कहूँ बेल॥कहूँ नाश दिखराय परत है कहँू कहूँ रार कहूँ मेल।
सब के भीतर सब के बाहर सब मैं करत कुलेल॥
सब के घट में आप बिराजौ ज्यों तिल भीतर तेल।
श्री ब्रजराज तुही अल बेला सब में रेला पेल॥
</poem>
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