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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ज़ियारत / अनु जसरोटिया
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जोगिया पैरहन में रहते हैं
हम प्रभु की लगन में रहते हैं
जिस तरह 'राम' वन में रहते थे
हम भी वैसे ही छन में रहते हैं
हैं ग़रीबी में बरकतें लाखों
सैंकड़ों ऐब धन में रहते हैं
इस तरफ़ भी निगाह करता जा
हम भी तेरे वतन में रहते हैं
कुछ तो देखे गये हैं धरती पर
कुछ सितारे गगन में रहते हैं
मुल्के-गँगो जमन हमारा है
मुल्के-गँगो जमन में रहते हैं
अनगिनत ख़ुशबुएँ, हज़ारों रंग
फूल के बाँकपन में रहते हैं
दौड़ते हैं लहू से रग रग में
जान से वो बदन में रहते हैं
हम अकेले भी हों तो लगता है
जैसे इक अंजुमन में रहते हैं
हम को क्या काम अहले-दुनिया से
मस्त हम अपने फ़न में रहते हैं
हम हैं ऊँची उड़ान के पंछी
शायरी के गगन में रहते हैं
</poem>
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|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ज़ियारत / अनु जसरोटिया
}}
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<poem>
जोगिया पैरहन में रहते हैं
हम प्रभु की लगन में रहते हैं
जिस तरह 'राम' वन में रहते थे
हम भी वैसे ही छन में रहते हैं
हैं ग़रीबी में बरकतें लाखों
सैंकड़ों ऐब धन में रहते हैं
इस तरफ़ भी निगाह करता जा
हम भी तेरे वतन में रहते हैं
कुछ तो देखे गये हैं धरती पर
कुछ सितारे गगन में रहते हैं
मुल्के-गँगो जमन हमारा है
मुल्के-गँगो जमन में रहते हैं
अनगिनत ख़ुशबुएँ, हज़ारों रंग
फूल के बाँकपन में रहते हैं
दौड़ते हैं लहू से रग रग में
जान से वो बदन में रहते हैं
हम अकेले भी हों तो लगता है
जैसे इक अंजुमन में रहते हैं
हम को क्या काम अहले-दुनिया से
मस्त हम अपने फ़न में रहते हैं
हम हैं ऊँची उड़ान के पंछी
शायरी के गगन में रहते हैं
</poem>