भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवमणि पांडेय }} [[Category:गीत]] :सजनी आंख मिचौली खेले<br> :बांध ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=देवमणि पांडेय
}}
[[Category:गीत]]
:सजनी आंख मिचौली खेले<br>
:बांध दुपट्टा झीना<br>
:महीना सावन का<br><br>
कर गया मुश्किल जीना महीना सावन का<br><br>
:मौसम ने ली है अंगड़ाई<br>
:चुनरी उड़ि उड़ि जाए<br>
:बैरी बदरा गरजे बरसे<br>
:बिजुरी होश उड़ाए<br><br>
घर-आंगन, गलियां चौबारा आए चैन कहीं ना<br><br>
:खेतों में फ़सलें लहराईं<br>
:बाग़ में पड़ गये झूले<br>
:लम्बी पेंग भरी गोरी ने<br>
:तन खाए हिचकोले<br><br>
पुरवा संग मन डोले जैसे लहरों बीच सफ़ीना<br><br>
:बारिश ने जब मुखड़ा चूमा<br>
:महक उठी पुरवाई<br>
:मन की चोरी पकड़ी गई तो<br>
:धानी चुनर शरमाई<br><br>
छुई मुई बन गई अचानक चंचंल शोख़ हसीना<br><br>
:कजरी गाएं सखियां सारी<br>
:मन की पीर बढ़ाएं<br>
:बूंदें लगती बान के जैसे<br>
:गोरा बदन जलाएं<br><br>
अब के जो ना आए संवरिया ज़हर पड़ेगा पीना<br><br>
{{KKRachna
|रचनाकार=देवमणि पांडेय
}}
[[Category:गीत]]
:सजनी आंख मिचौली खेले<br>
:बांध दुपट्टा झीना<br>
:महीना सावन का<br><br>
कर गया मुश्किल जीना महीना सावन का<br><br>
:मौसम ने ली है अंगड़ाई<br>
:चुनरी उड़ि उड़ि जाए<br>
:बैरी बदरा गरजे बरसे<br>
:बिजुरी होश उड़ाए<br><br>
घर-आंगन, गलियां चौबारा आए चैन कहीं ना<br><br>
:खेतों में फ़सलें लहराईं<br>
:बाग़ में पड़ गये झूले<br>
:लम्बी पेंग भरी गोरी ने<br>
:तन खाए हिचकोले<br><br>
पुरवा संग मन डोले जैसे लहरों बीच सफ़ीना<br><br>
:बारिश ने जब मुखड़ा चूमा<br>
:महक उठी पुरवाई<br>
:मन की चोरी पकड़ी गई तो<br>
:धानी चुनर शरमाई<br><br>
छुई मुई बन गई अचानक चंचंल शोख़ हसीना<br><br>
:कजरी गाएं सखियां सारी<br>
:मन की पीर बढ़ाएं<br>
:बूंदें लगती बान के जैसे<br>
:गोरा बदन जलाएं<br><br>
अब के जो ना आए संवरिया ज़हर पड़ेगा पीना<br><br>