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{{KKRachna
|रचनाकार=मनमोहन
|अनुवादक=|संग्रह=ज़िल्लत की रोटी / मनमोहन
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<poem>
एक ऐसी स्वच्छ सुबह मैं जागूँ
जब सब कुछ याद रह जाय जाए
और बहुत कुछ भूल जाय जाए जो फालतू फ़ालतू है</poem>