भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सब सियासी ताक़तें हाथों में उनके आ गयीं
लोफ़रों- गुंडों से ज़्यादा अब कोई का़बिल नहीं
जो जु़नूँ में भूल जाये क्या ग़लत है, क्या सही