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चढ़ गया रंग फूलों पें मधुमास का
लौट आया समय हर्ष उल्लास का
यों अलंकार तो एक से एक हैं
जोड़ कोई नहीं किन्तु अनुप्रास का
 
एक छोटा सा हस्ताक्षर आपका
बन गया है शिलालेख इतिहास का
 
जानता हूँ कि धन की कमी रह गयी
इसलिए बन गया पात्र उपहास का
 
आप से दृष्टि जैसे हमारी मिली
छँट गया सब कुहासा अविश्वास का
 
जेठ की धूप मे तप रही हो धरा
तो बिछा लेा बिछौना हरी घास का
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