भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
हर आने जाने वाले पर
भौंक रहे कुत्ते
निर्बल को दौड़ा लेने में
मज़ा मिले जब
तो
क्यों ये भौंक रहे हैं
इससे क्या मतलब इनको
हल्की से हल्की आहट पर
चौंक रहे कुत्ते
हर गाड़ी का पीछा करते
सदा बिना मतलब
कई मिसालें बनीं
न जाने ये सुधरेंगे कब
राजनीति गौ की चरबी से
छौंक रहे कुत्ते
गर्मी इनसे सहन न होती
फिर भी ये हरदम
करते हरे भरे पेड़ों से
बातें बहुत गरम
हाँफ-हाँफ नफ़रत की भट्ठी
धौंक रहे कुत्ते
</poem>