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पौने दो घंटे / निशांत

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{{KKRachna
|रचनाकार=निशांत
}}

आधा घंटा <br>
चुरा लिया है मैंने सुबह के समय में <br>
समाचार-पत्र पढ़ने के लिए <br><br>

एक घंटा चुरा लिया है मैंने <br>
दोपहर की कार्यावधि के बीच से <br>
कहानियों को पढ़ने के लिए <br><br>

पन्द्रह मिनट और चुरा लिए हैं मैंने <br>
अपनी नींद से <br>
कविताओं के लिए <br><br>

इस तरह <br>
पंखे की तरह दौड़ती हुई ज़िन्दगी में से <br>
प्रतिदिन चुरा लेता हूँ मैं <br>
पौने दो घंटे क़िताबों के लिए <br><br>

इन पौने दो घंटे ही <br>
रहता हूँ मैं मनुष्य <br>
बाक़ी समय पंखा, रेलगाड़ी, हवाई जहाज, कंप्यूटर <br>
और ई-मेल में तब्दील रहता हूँ <br>
एक गंतव्य से दूसरे <br>
और दूसरे से फिर-फिर पहले की तरफ़ <br>
दौड़ लगाते हुए <br><br>