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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
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<poem>
सूर्य बरसाता अगन है अब तो हो साया ज़रा
शीश पर भगवान की करुणा की हो छाया ज़रा
धूप झुलसाती बदन को है पसीना चू रहा
किन्तु क्रोधित सूर्य को कब है तरस आया ज़रा
शुष्क धरती खेत में कितनी दरारें पड़ गयीं
स्वेद की बूँदों ने प्यासा गीत फिर गाया ज़रा
देखती नीले गगन को तृषित आँखें झर रहीं
प्यास इतनी नयन को है भीगना भाया ज़रा
लो उठीं काली घटाएँ हैं क्षितिज के छोर से
बादलों ने आज आ कर नीर बरसाया ज़रा
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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सूर्य बरसाता अगन है अब तो हो साया ज़रा
शीश पर भगवान की करुणा की हो छाया ज़रा
धूप झुलसाती बदन को है पसीना चू रहा
किन्तु क्रोधित सूर्य को कब है तरस आया ज़रा
शुष्क धरती खेत में कितनी दरारें पड़ गयीं
स्वेद की बूँदों ने प्यासा गीत फिर गाया ज़रा
देखती नीले गगन को तृषित आँखें झर रहीं
प्यास इतनी नयन को है भीगना भाया ज़रा
लो उठीं काली घटाएँ हैं क्षितिज के छोर से
बादलों ने आज आ कर नीर बरसाया ज़रा
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