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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
सत्य मार्ग पर सदा सभी को काँटे मिलते हैं
बार बार चलने वालों के पाँव फिसलते हैं

मत सोचो तुमने क्या पाया है कितना खोया
अमर प्यार के पंछी इन राहों पर चलते हैं

दुनियाँ बड़ी विकट है करती स्वार्थ भरी बातें
क्षणिक लाभ के लिये एक दूजे को चलते हैं

चुप रह कर सह जाने वाले रहें अकेले तो
दर्द आँख से आँसू बन कर हरदम ढलते हैं

समय खेलता आँख मिचौली रहे सदा सबसे
दर्द भरे पल सब शम्मा के साथ पिघलते हैं

</poem>