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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दुनिया में हर मानव किस्मत से हारा
घिरता ही रहता है भीषण अँधियारा
घिरने लगतीं ग़म की घोर घटाएँ जब
बह जाता है धीरज पा आँसू धारा
जख्मों से लबरेज़ कलेजा लेकर भी
जननी है जिसने सुत पर जीवन वारा
आहों पर प्रतिबंध लगाये दुनियाँ पर
कब रुक पाता आँखों का आँसू खारा
सिर्फ़ दुआएँ होतीं माँ की झोली में
हास खिला रहता है अधरों पर प्यारा
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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दुनिया में हर मानव किस्मत से हारा
घिरता ही रहता है भीषण अँधियारा
घिरने लगतीं ग़म की घोर घटाएँ जब
बह जाता है धीरज पा आँसू धारा
जख्मों से लबरेज़ कलेजा लेकर भी
जननी है जिसने सुत पर जीवन वारा
आहों पर प्रतिबंध लगाये दुनियाँ पर
कब रुक पाता आँखों का आँसू खारा
सिर्फ़ दुआएँ होतीं माँ की झोली में
हास खिला रहता है अधरों पर प्यारा
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