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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
जब किसी की नहीं कदर होगी
ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी

है ये दस्तूर इस जमाने का
रात बीतेगी तब सहर होगी

आँसुओं को भी धलकन होगा
पीर यूँ ही नहीं सबर होगी

कोई अपना ही जब बने दुश्मन
वो ही बर्बादियों का दर होगी

कोशिशें कीं न पर मिली मंजिल
रह गयी कुछ कहीं कसर होगी

</poem>