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<poem>
उसने दर्पण दिखा दिया मुझको
और मुझसे मिला दिया मुझको

दिन में तारे दिखाई देते हैं
आप ने क्या पिला दिया मुझको

दर्द आहें फ़रेब रूस्वाई
इश्क़ ने और क्या दिया मुझको

ख़ुद को हम ख़ूबरू समझते थे
आईने ने डरा दिया मुझको

मैंने क्या क्या तुझे नवाज़ा है
तू बता तू ने क्या दिया मुझको

ए मुहब्बत मेरी ख़ता क्या थी
खाक़ मे क्यों मिला दिया मुझको

शब के पिछले पह्र वो याद आया
जिसने जा कर भुला दिया मुझको

ज्यूँ गिरे शाख़ से कोई पत्ता
यूँ नज़र से गिरा दिया मुझको

मैं ज़हीनों में थी शुमार सुमन
उसने पागल बना दिया मुझको

</poem>