भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
आँसुओं से अपना दामन तर-बतर होने के बाद
खुश्क ख़ुश्क होता है हवाओं को ख़बर होने के बाद
ये हमारी बेबसी है या मुक़द्दर का सितम
गीत कोई कैसे गाते नौहागर होने के बाद
लिखने वाले ने कुछ ऐसी ऐसे दास्ताने-ग़म लिखी
पढ़ने वाले रो पड़े दिल पर असर होने के बाद
सुब्ह दम सूरज की किरनो किरनों का असर भी खूब ख़ूब है दर्दे-दिल अब थम सा गया है रात भर होने के बाद
खुश हुआ दिल उन लबों पर कब तलक तरसेंगे ये लब इक तबस्सुम देखकरके लिए लौट आयीं फिर से बारहा पूछें ये खुशियाँ चश्म तर होने के बाद
हो गया जीने का सामाँ मिल गई मंज़िल 'रक़ीब'
दर तेरा तिरा पाया जबीं ने दर-बदर होने के बाद
</poem>
384
edits