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[[Category:हाइकु]]
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बिछुड़े कैसे
सिंधु से जलधारा
प्यार अपार।
जाने न कोई
कथाएँ जो लिखी थीं
अश्रु -डुबोई।
'''गोद है भीगी
प्रलय बन बहे
आँसू बावरे।'''
'''घिरा आग में
व्याकुल हिरना -सा
खोजूँ तुमको।'''
चारों तरफ
है घनेरा जंगल
कहाँ हो तुम!
प्यास बुझेगी
मरुथल में कैसे
साथ न तुम!
अँजुरी भर
पिलादो प्रेमजल
प्राण कण्ठ में!
शब्दों से परे
सारे ही सम्बोधन
पुकारूँ कैसे !
'''भूलूँ कैसे मैं
तेरा वो सम्मोहन
कसे बन्धन।'''
तन माटी का
मन का क्या उपाय
मन में तुम।
तरसे नैन
अरसा हुआ देखे
छिना है चैन।
देह नश्वर
देही, प्रेम अमर
मिलेंगे दोनों।
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