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<poem>
सुणियौ सांवण मास में झड़ियां बरसै मेह
पण काळ पड़यौ अेड़ौ कटक नैणां झरियौ नेह

हेली हींडा हींडती पूछै तरवर पात
कैड़ी लागै काळ में बैरागी री बात

बैना बांधण राखड़ी पूगी पीहर पौळ
काळ बिछेवौ कर गयौ मन में पड़गी मौळ

बीनणियां बिलमाय मन बद बद करै बखांण
पण सेवण सांवण मास में पाड़ी काळ पिछांण

सांवण में सर सूखियौ पांणी सूनी पाळ
जळ पताळां पूगियौ करड़ौ पड़ियौ काळ
</poem>
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