भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मानोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मानोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}

<poem>
बहुत सुंदर है हमारा कल यकीनन,
लौट पाते पर कहीं यदि पल पुराने ।

संग में जो चित्र खींचे
हो रहे साकार अब पर,
रंग सारे घुल गये हैं
वक्त के उस कैन्वस पर।
तूलिका इक हाथ ले कर
साथ में जो बुने सपने,
दीर्घ रजनी में गुमे हैं
शेष इक आभास है भर ।

अब उसी आभास को हम
चलो छू लें,
संग में अब चलो जी लें,
कल सुहाने ।

आज भी कुछ ख़्वाब मेरे
रखे सिरहाने तुम्हारे
जागते हैं रात भर
पर लुप्त हो जाते सेवेरे,
स्पर्श इक पल का तुम्हारा
दौड़ता है हर शिरा मे,
गंध की अनुभूति कोई
समा जाती बहुत गहरे,
एक भीनी हवा छू कर गई
जैसे,
बदलती जीवन-कथा के
सभी माने।

घेरता था बढ़ अंधेरा
जब अचानक हर तरफ़ से,
दूर कोई रोशनी तब
इक अजाना पथ दिखाती
आस की डोरी इशारों
ने तुम्हारे बाँध दी तो
कभी मेरी क्षणिक आशा
फिर तुम्हें चलना सिखाती,
चांद तक का हो सफ़र
अब पूर्ण शायद,
मिले शायद ख्वाब को भी
अब ठिकाने।
</poem>