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Kavita Kosh से
तुम, जाने या बेजाने?
कोकिल बोलो तो!
क्यों तमोपत्र पत्र तमपत्र पर विवश हुई
लिखने चमकीली तानें?
कोकिल बोलो तो!
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली कमली काली,
मेरी लोहलौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की व्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट-सागर पर
मरने कीको, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
फिर भी कस्र्णा-गाहक बन्दी सोते हैं,
स्वप्नों में स्मृतियों की श्वासें धोते हैं!
इन लोहलौह-सीखचों की कठोर पाशों में
क्या भर देगी? बोलो निद्रित लाशों में?