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दुआओं में असर आना ज़रूरी है।
नहीं तो बन्दगी अपनी अधूरी है।
बुलंदी पर जो चाहें ख़्वाहिशें पहुँचें,
तो उन में भी जिगर होना ज़रूरी है।
 
बहुत-सी ख़ामियाँ हैं इस ज़माने में,
हुकूमत की इक इनमें जी हुज़ूरी है।
 
मैं कैसे झूठ से मुँह मोड़ सकता हूँ?
मिला करती मुझे इसकी “मजूरी” है।
 
करो ख़ुद फ़ैस्ला ऐ ‘नूर’ तुम इसका,
तुम्हारी हर अदा कितनी सिन्दूरी है।
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