भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
शबाब की नक़ाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शम्मा बुझ गयी गई
गिलास ग़ुम शराब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
हुई वही किताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
लबों से लब जो मिल गयेगए, लबों से लब जो सिल गये गए
सवाल ग़ुम जवाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits