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|रचनाकार=राजेन्द्र देथा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
आदमी मनुष्य का
सबसे समझदार धन था
इक दिन ब्याहना ही था
आदमी जो ठहरा
बारात चल पड़ी थी
दूल्हा अपनी मां का स्तनपान
की रीति को कर निकल गया
"शालकटार" लेकर
माँ खातिर बहू लाने
माँ वापिसी की बाट जोह रही
घर में मांडणे मांड रही थी।
आ भी गयी बारात
बधाया गया उन्हें
केसरिया गाया गया
कुछ दिन लाड-कोड में बीत गए
भाई दो ही थे सम्प इस कदर था
कि दो ही दोनों के न थे
सम्प्रति पर बवाल उठा
माँ हमेशा छोटे के साथ रही है
बहू ने माताजी को खूब कोसा
गालियाँ तक दी
आखिर छोड़ वह घर चल दिया
वह दूर कहीं किसी शहर में
माँ के मरने तक
सनद रहे आदमी एक समझदार धन था
पर वह कामेच्छा व सुंदरता पर मर सा गया!
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
आदमी मनुष्य का
सबसे समझदार धन था
इक दिन ब्याहना ही था
आदमी जो ठहरा
बारात चल पड़ी थी
दूल्हा अपनी मां का स्तनपान
की रीति को कर निकल गया
"शालकटार" लेकर
माँ खातिर बहू लाने
माँ वापिसी की बाट जोह रही
घर में मांडणे मांड रही थी।
आ भी गयी बारात
बधाया गया उन्हें
केसरिया गाया गया
कुछ दिन लाड-कोड में बीत गए
भाई दो ही थे सम्प इस कदर था
कि दो ही दोनों के न थे
सम्प्रति पर बवाल उठा
माँ हमेशा छोटे के साथ रही है
बहू ने माताजी को खूब कोसा
गालियाँ तक दी
आखिर छोड़ वह घर चल दिया
वह दूर कहीं किसी शहर में
माँ के मरने तक
सनद रहे आदमी एक समझदार धन था
पर वह कामेच्छा व सुंदरता पर मर सा गया!
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