भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
और चलो मत अंगारों पर।
मेरा लहू बिखर जाएगा
नारे बनकर दिवरों दिवारों पर।
'''(कनु सान्याल के लिए)'''
</Poem>