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Kavita Kosh से
रौशनी और अन्धेरे की तफ़रीक़ में कितने लोगों ने आँखें गँवा दीं
कितनी सदियाँ सफ़र में गुज़ारीं मगर आज फिर
उस जगह हैं जहाँ से हमें अपनी माओं ने रुख़्सत किया थाअपने थाअपने सबसे बड़े ख़्वाब को
अपनी आँखों के आगे उजड़ते हुए देखने से बुरा कुछ नहीं है