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|रचनाकार=भारतेंदु भारतेन्दु मिश्र
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जूतों में कीलें हैं
रास्ते नुकीले हैं
बपर्फ बर्फ़-सी पिघलती
और सिर्फ चलती
ओठों पर अड़ियल मुस्कान है।