भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
जे बुढ अनल जमाय। गे माइ॥
पहिलुक बाजन डामरू डमरू तोड़बदोसर तोड़ब रुण्डमाल। गे माइ॥
बड़द हाँकि बरिआत बैलायब
धियालय जायब पराय गे माइ।
धोती लोटा पतरा पोथीपतरा सेहो सब लेबनि छिनाय। गे माइ॥
जँ किछु बजताह नारद बाभन
दाढ़ी धय लय घिसियाब, गे माइ।
भनइ विद्यापति सुनु हे मनाइनि
दृढ करू अपन गेआन। गे माइ॥सुभ सुभ कय सिरी सिव गौरी बियाहु
गौरी हर एक समान, गे माइ॥</poem>