भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह दौर / गुलरेज़ शहज़ाद

628 bytes added, 08:29, 8 जून 2020
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> गीत ग़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNazm}}

<poem>
गीत ग़ज़ल की
सब राधाएं
राजनीति की नगरवधू के
अंधे-अंधेरे कोने में
औंधी पड़ी हैं
उजले चमकीले जोड़े में
और इधर लाचार खड़ा हूं
फीकी हंसी के खोटे सिक्के
खनक रहे हैं
मेरे भीतर की सब धाराएं
सनक रही हैं
</poem>
230
edits