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Kavita Kosh से
शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो
पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोडेंगे
समतल पीटे बिना समर कि की भूमि नहीं छोड़ेंगे
समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर
तिमिर पुत्र ये दस्यु कहीं कोई दुष्काण्ड रचें ना
सावधान ! हो खडी खड़ी देश भर में गाँधी की सेना बलि देकर भी बलिबली! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे
मंदिर औ' मस्जिद दोनों पर एक तार बाँधो रे