|सारणी=मधुशाला / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
ढलक रही हो तन के घट से,संगिनि,जब जीवन-हाला,
पात्र गरल का ले जब अंतिम साकी हो आनेवाला,
हाथ परस भूले प्याले का,स्वाद-सुरा जीव्हा भूले,
कानों में तुम कहती रहना,मधुकण,प्याला,मधुशाला।।८१।
ढलक रही मेरे अधरों पर हो तन के घट सेअंतिम वस्तु न तुलसी-दल,संगिनिप्याला,जब जीवन-हाला,<br>पात्र गरल का ले जब मेरी जीव्हा पर हो अंतिम साकी हो आनेवालावस्तु न गंगाजल, हाला,<br>हाथ परस भूले प्याले कामेरे शव के पीछे चलने वालों,स्वादयाद इसे रखना-सुरा जीव्हा भूले,<br>कानों में तुम कहती रहना,मधुकण,प्यालाराम नाम है सत्य न कहना,मधुशाला।।८१।<br><br>कहना सच्ची मधुशाला।।८२।
मेरे अधरों शव पर वह रोये, हो अंतिम वस्तु न तुलसी-दलजिसके आंसू में हालाआह भरे वो,प्यालाजो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,<br>मेरी जीव्हा दे मुझको वो कांधा जिनके पग मद डगमग होते होंऔर जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो अंतिम वस्तु न गंगाजल, हाला,<br>मेरे शव के पीछे चलने वालों, याद इसे रखना-<br> राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।८२।<br><br>मधुशाला।।८३।
मेरे शव और चिता पर वह रोयेजाये उंढेला पत्र न घ्रित का, पर प्यालाकंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो जिसके आंसू में , पर हाला<br>आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,<br>दे मुझको वो कांधा जिनके पग मद डगमग होते हों<br>प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करनाऔर जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३।<br><br>पीने वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला।।८४।
नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवालाकाम ढालना, और चिता पर जाये उंढेला पत्र न घ्रित ढालना सबको मदिरा का, पर प्याला<br>कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,<br>प्राण जाति प्रिये , पूछे यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना<br>पीने वालों को बुलवा कर खुलवा कोई कह देना मधुशाला।।८४।<br><br>दीवानों कीधर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।८५।
नाम अगर कोई पूछे तोज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला, कहना बस पीनेवाला<br>काम ढालनापंडित अपनी पोथी भूला, और ढालना सबको मदिरा का प्यालासाधू भूल गया माला,<br>जाति प्रियेऔर पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की <br>धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।८५।<br><br>किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला।।८६।
ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,<br>पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया मालाचलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला,<br>और पुजारी भूला पूजास्वर्ग, ज्ञान सभी ज्ञानी भूलानरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल,<br>किन्तु न भूला मरकर ठौर सभी हैं एक तरह के भी पीनेवाला मधुशाला।।८६।<br><br>साथ रहे यदि मधुशाला।।८७।
यम ले चलता है मुझको पाप अगर पीना, समदोषी तोतीनों - साकी बाला, चलने दे लेकर हाला,<br>चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में नित्य पिलानेवाला प्याला,<br>स्वर्गपी जानेवाली हाला, नरक या जहाँ कहीं साथ इन्हें भी तेरा जी हो लेकर ले चलमेरे न्याय यही बतलाता है,<br>ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला।।८७।<br><br>कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।८८।
पाप अगर पीनाशांत सकी हो अब तक, समदोषी तो तीनों - साकी बाला,<br>पीकर किस उर की ज्वाला,नित्य पिलानेवाला प्याला'और, पी जानेवाली हालाऔर' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला,<br>साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है,<br>कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!कैद जहाँ मैं हूँ, कितने अरमानों की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।८८।<br><br>बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।।८९।
शांत सकी हो अब तकजो हाला मैं चाह रहा था, साकीवह न मिली मुझको हाला, पीकर किस उर की ज्वालाजो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,<br>'औरजिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, और' की रटन लगाता जाता हर पीनेवालान मिला साकी,<br>कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाताजिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!<br>कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।।८९।<br><br>।९०।
जो हाला मैं चाह देख रहा था, वह न मिली मुझको हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,<br>जो प्याला मैं माँग देख रहा था, वह न मिला मुझको हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला,<br>जिस साकी के 'बस अब पाया!'- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,<br>जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।९०।<br><br>किंतु रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला।।९१।
देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हालाकभी निराशा का तम घिरता,<br>देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन छिप जाता मधु का प्याला,<br>'बस अब पाया!'- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछेछिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साकीबाला,कभी उजाला आशा करके प्याला फिर चमका जाती,<br>किंतु आँखिमचौली खेल रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला।।९१।<br><br>मधुशाला।।९२।
कभी निराशा का तम घिरता'आ आगे' कहकर कर पीछे कर लेती साकीबाला, छिप जाता मधु का होंठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती प्याला,<br>छिप जाती मदिरा की आभानहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी, छिप जाती साकीबाला,<br>कभी उजाला आशा करके प्याला फिर चमका जातीबढ़ा बढ़ाकर मुझको आगे,<br>आँखिमचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।।९२।<br><br>पीछे हटती मधुशाला।।९३।
'आ आगे' कहकर कर पीछे कर लेती साकीबालाहाथों में आने-आने में,<br>होंठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती हाय, फिसल जाता प्याला,<br>नहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगीअधरों पर आने-आने में हाय, ढुलक जाती हाला,<br>बढ़ा बढ़ाकर मुझको आगेदुनियावालो, पीछे हटती मधुशाला।।९३।<br><br>आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो,रह-रह जाती है बस मुझको मिलते-मिलते मधुशाला।।९४।
हाथों में आने-आने मेंप्राप्य नही है तो, हायहो जाती लुप्त नहीं फिर क्यों हाला, फिसल प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला,<br>अधरों पर आने-आने में हायदूर न इतनी हिम्मत हारुँ, ढुलक जाती हालापास न इतनी पा जाऊँ,<br>दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो,<br>रह-रह जाती है बस मुझको मिलते-मिलते मधुशाला।।९४।<br><br>व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला।।९५।
प्राप्य नही है तोमिले न, पर, हो जाती लुप्त नहीं फिर ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला,<br>प्राप्य नही है तोमिले न, हो जाता लुप्त नहीं फिर पर, तरसा तरसाकर क्यों तड़पाता है प्याला,<br>हाय, नियति की विषम लेखनी मस्तक पर यह खोद गई'दूर न इतनी हिम्मत हारुँरहेगी मधु की धारा, पास न इतनी पा जाऊँ,<br>व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला।।९५।<br><br>रहेगी मधुशाला!'।९६।
मिले मदिरालय में कब से बैठा, पी न, पर, ललचा ललचा क्यों आकुल करती है सका अब तक हाला,<br>मिले न, परयत्न सहित भरता हूँ, तरसा तरसाकर क्यों तड़पाता है कोई किंतु उलट देता प्याला,<br>हायमानव-बल के आगे निर्बल भाग्य, सुना विद्यालय में, नियति की विषम लेखनी मस्तक पर यह खोद गई<br>'दूर रहेगी मधु की धाराभाग्य प्रबल, पास रहेगी मधुशाला!मानव निर्बल'।९६।<br><br>का पाठ पढ़ाती मधुशाला।।९७।
मदिरालय किस्मत में कब से बैठाथा खाली खप्पर, पी न सका अब तक हालाखोज रहा था मैं प्याला,<br>यत्न सहित भरता हूँढूँढ़ रहा था मैं मृगनयनी, कोई किंतु उलट देता प्यालाकिस्मत में थी मृगछाला,<br>मानव-बल के आगे निर्बल किसने अपना भाग्य, सुना विद्यालय समझने मेंमुझसा धोखा खाया,<br>'भाग्य प्रबलकिस्मत में था अवघट मरघट, मानव निर्बल' का पाठ पढ़ाती मधुशाला।।९७।<br><br>ढूँढ़ रहा था मधुशाला।।९८।
किस्मत में था खाली खप्पर, खोज रहा था मैं उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,<br>ढूँढ़ रहा था मैं मृगनयनीउस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला, किस्मत प्यार नहीं पा जाने में थी मृगछालाहै,<br>पाने के अरमानों में!किसने अपना भाग्य समझने में मुझसा धोखा खायापा जाता तब,<br>किस्मत में था अवघट मरघटहाय, ढूँढ़ रहा था मधुशाला।।९८।<br><br>न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।९९।
उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,<br>उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,<br>प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!<br>पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।९९।<br><br> साकी के पास है तिनक सी श्री, सुख, संपित की हाला,<br>सब जग है पीने को आतुर ले ले किस्मत का प्याला,<br>रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते,<br>जीवन का संघर्ष नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।।१००।<br/poem><br>{{KKPageNavigation|पीछे=मधुशाला / भाग ४ / हरिवंशराय बच्चन|आगे=मधुशाला / भाग ६ / हरिवंशराय बच्चन|सारणी=मधुशाला / हरिवंशराय बच्चन}}