भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभाकर माचवे|अनुवादक=|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}1<br><brpoem>1.
सन्ध्या की उदास छायाएँ
::गीत अकेला सा यह मेरा...
2<br><br>.
भूरे नभ में रात उतरती
::शिशिर-साँझ की धुँधली वेला
पीपल का विराट श्यामन वपु
::खडा खड़ा हुआ कंकाल अकेला
एक चील का क्षीण घोंसला
::क्षीण, तीज की पीत शशिकला
अटके हैं ज्यों जीर्ण देह में
::बचा मोह का तंतु तन्तु विषैला ।
3<br><br>.
मधु-ऋतु की सकाल अरुणाली
पर मैं वैसा ही बाकी हूँ
::वैसी कड़ियाँ एकाकी ।
</poem>