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13:30, 11 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार विक्रम
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|संग्रह=
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<poem>
अंत में उसने कहा था
कि अंत में सब ठीक हो जाएगा
अंतत: सबका भला होगा
मैंने सोचा था
अंत अंत में ही आएगा
मुझे यह इल्म नहीं था
कि अंत दरअसल
एक रोज़ाना ख़बर थी
और अंत अंत में नहीं
बल्कि हर पल
आने वाले अंत की
एक बानगी दिखाता जाएगा
शायद मेरी ही तरह
उसे भी यह अंदाज़ा नहीं था
कि वह जिस अंत की बात कर रहा था
वह दरअसल अंत नहीं
बल्कि अंत की सिर्फ़ शुरूआत थी।
''‘बहुवचन’ 2017''
</poem>