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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिमोहन सारस्वत
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बाबा,
तुम बीच में ही क्यों चले गए ?
तुमने तो पूंछ उठाकर
देख लिया था सबको
उस वक्त
कम से कम
मादा होने का भ्रम तो हुआ था तुम्हे
पुंछ के नीचे के हालात देख कर
लेकिन तुम्हारे बीच में जाने के बाद
हम सब
बीच के होकर रह गए हैं
मरी हुई मादाओं ने
नपुंसकों को
नई पीढ़ी के रूप में उतार दिया है
सत्ता संभालने के लिए
तुम थे
तब हिंजड़ों में भी
स्त्री और पुरूष का कन्सेप्ट था
पर आज का सत्तासीन नपुंसक
सिर्फ बीच का होकर रह गया है
जो वक्त के मुताबिक उगा लेता है
मनचाहे अंग पर तना हुआ लिंग
और ढल जाता है
झुक जाता है
जरूरत पड़ने पर
अपने छेद को
योनि सिद्ध करने की खातिर
कहीं भी
कभी भी
बेहयाई की सारी हदें
पार कर चुके हैं हमारे आज के आका
अब तुम ही कहो
सड़क से संसद तक
सडान्ध मारती व्यवस्था को
किस गंगा के जल से धोएं ?
</poem>
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बाबा,
तुम बीच में ही क्यों चले गए ?
तुमने तो पूंछ उठाकर
देख लिया था सबको
उस वक्त
कम से कम
मादा होने का भ्रम तो हुआ था तुम्हे
पुंछ के नीचे के हालात देख कर
लेकिन तुम्हारे बीच में जाने के बाद
हम सब
बीच के होकर रह गए हैं
मरी हुई मादाओं ने
नपुंसकों को
नई पीढ़ी के रूप में उतार दिया है
सत्ता संभालने के लिए
तुम थे
तब हिंजड़ों में भी
स्त्री और पुरूष का कन्सेप्ट था
पर आज का सत्तासीन नपुंसक
सिर्फ बीच का होकर रह गया है
जो वक्त के मुताबिक उगा लेता है
मनचाहे अंग पर तना हुआ लिंग
और ढल जाता है
झुक जाता है
जरूरत पड़ने पर
अपने छेद को
योनि सिद्ध करने की खातिर
कहीं भी
कभी भी
बेहयाई की सारी हदें
पार कर चुके हैं हमारे आज के आका
अब तुम ही कहो
सड़क से संसद तक
सडान्ध मारती व्यवस्था को
किस गंगा के जल से धोएं ?
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