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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>
वनिता की ममता न हुई, सुत का न मुझे कुछ छोह हुआ,
ख्याति, सुयश, सम्मान, विभव का, त्यों ही, कभी न मोह हुआ।
कविते! देखो विजन विपिन में वन्य कुसुम का मुरझाना,
व्यर्थ न होगा इस समाधि पर दो आँसू कण बरसाना। </poem>