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<poem>
हृदय पर तो है प्रथम अंकन तुम्हारे नाम का
अब किसी के भी लिए ये मन भला किस काम का।
जब कभी था ब्रम्ह ने ये जग बनाया
और मानव तन को जीवन से सजाया
और रच कर साथ तब हमको विधाता,
प्रेम के नव व्याकरण पर मुस्कुराया
दे दिया उसने बसेरा हमे बस एक धाम का
हृदय पर तो है प्रथम अंकन तुम्हारे नाम का।।

भोर सोने की तरह उसने सजाई,
दोपहर चांदी के जैसी मुस्कुराई।
सांझ ने न्योता दिया सिंदूर को,
रात सपनीली बहुत ही कसमसाई।
है हमारे प्रेम का साम्राज्य आठों याम का,
हृदय पर तो है प्रथम अंकन तुम्हारे नाम का।

रूप कुंदन सा तुम्हारा है सुनो,
और तन चन्दन तुम्हारा है सुनो।
तुम ही मोती और माणिक हो मेरे,
गहन अभिनंदन तुम्हारा है सुनो।।
प्रेम ही परिणाम है इस प्रेम के परिणाम का।
हृदय पर तो है प्रथम अंकन तुम्हारे नाम का।।
</poem>
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