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|रचनाकार=अंबर खरबंदा
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<poem>
कैसे कैसे क्या से क्या होते गए
इब्तिदा थे इन्तिहा होते गए
ग़म मिले इसका भी बेहद ग़म रहा
और फिर ग़म ही दवा होते गए
हम नहीं समझे के क्या है ज़िन्दगी
आप जीने की अदा होते गए
</poem>
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कैसे कैसे क्या से क्या होते गए
इब्तिदा थे इन्तिहा होते गए
ग़म मिले इसका भी बेहद ग़म रहा
और फिर ग़म ही दवा होते गए
हम नहीं समझे के क्या है ज़िन्दगी
आप जीने की अदा होते गए
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